दो अक्षरों का शब्द " आश्री " संस्कृत मूल से लिया गया एक शब्द है जिसका अर्थ है रक्षक या संरक्षक । आश्री का एक और अर्थ है - हमेशा मुस्कुराना । आश्री शब्द का पहला अक्षर " आ " आनन्द सागर (भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम)" से लिया गया है जबकि " श्री " माता राधा या लक्ष्मी का एक नाम है । इससे ज्यादा महत्वपूर्ण एक बात और भी है । वो ये कि श्रीमद्भगवद्गीता मे भगवान श्रीकृष्ण ने सारा उपदेश मुस्कान मुद्रा में दिया है । इस प्रकार आश्री शब्द को परिभाषित करते हुये कहा जा सकता है कि " प्रसन्नचित्त भगवान श्रीकृष्ण और माता राधे के आशीर्वाद से संरक्षित आश्री (आश्रय मे रहने वाला) मनुष्य के जीवन में भयमुक्त मुस्कान सदा बनी रहती है और स्व - कल्याण सुनिश्चित है ।
मैं, विवेकानन्द, भारत के बिहार राज्य में जन्में, रमें और रचे - बसे । स्कूली शिक्षा जिला स्कूल, मुजफ्फरपुर में हुआ । वर्ष 1969 - 70 मे स्कूल के स्मारिका में मेरी पहली रचना कविता के रुप मे छपी थी । कविता का शीर्षक था " पैटन टैंक " । आगे की पारंपरिक शिक्षा मे राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री ( MA) के साथ - साथ कानून में डिग्री ( LL.B) एवं व्यवसाय प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिग्री (MBA) बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर से प्राप्त किया । 1981 में बिहार स्थित ग्रामीण बैंक मे अधिकारी के रूप मे चयनित हुआ । 1989 के बाद कुछ वर्षों तक बैंकिंग कोचिंग संस्थान से जुड़ने का अवसर मिला । संस्थान द्वारा 1990 - 91 में हिन्दी माध्यम के प्रतियोगियों के लिए यूपीएससी, बिपीएससी की प्रशासकीय प्रतियोगिता परीक्षा हेतु हिन्दी में " ऑपरेशन केरियर " के नाम से मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरु किया गया । लगभग एक वर्ष तक इस पत्रिका का मैं अवैतनिक मुख्य संपादक रहा । वर्ष 1991 में भारत सरकार के उद्यमिता विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं बिहार सरकार और इलाहाबाद बैंक द्वारा पोषित संस्था " उद्यमिता विकास संस्थान, पटना " से Resource person के रूप में जुड़ने का अवसर मिला । यहाँ से मेरी सोंच मे एक सकारात्मक बदलाव आना शुरु हुआ । ये बदलाव था समस्या से भागने के बजाये सामना करने का नजरिया ।
2005 में मेरा स्थानांतरण बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय में हुआ । जिला प्रशासन द्वारा जिला स्तरीय स्वयं सहायता समूह ऋण वितरण शिविर के समन्वयक की जवाबदेही हमे दी गयी । इस अवसर पर मेरे सम्पादन में एक स्मारिका प्रकाशित हुआ । साथ ही, स्वयं सहायता समूह के महत्व और प्रासंगिकता पर लगभग 38 मिनट का एक वृत्तचित्र भी प्रस्तुत किया गया । फिल्म में बैंक प्रबंधक की भूमिका मैने निभायी थी । एक सकारात्मक सोच ने सफलता के सफर को अवकाश प्राप्ति के दिन तक बनाये रखा । अंततः जून 2016 में बैंक से स्थायी अवकाश मिल गया ।
बैंकिंग कार्य से स्थायी अवकाश जरुर मिला परन्तु जिंदगी का सफर तो जारी है । काम की केवल प्रकृति बदली है, व्यस्तता तो यथावत है। बचपन से ही आध्यात्म मेरा प्रिय विषय रहा है । लिखने का शौक पहले से था ही, इसलिए अवकाश प्राप्ति के पश्चात आध्यात्म के विषयों पर अपनी सोंच, अपनी समझ और अपना अनुभव, लेखन के माध्यम से, लोगों के सामने रखने का कार्य मेरा नया कर्मक्षेत्र है ।
विवेकानन्द ।